Wednesday, 19 February 2014

गरीबी


एक मासूम बच्ची मिली थी मुझे पत्थर तोड़ती हुई
पेट की भूँख मिटाने के लिये कुछ पैसे जौड़ती हुई
एक मासूम बच्ची मिली थी मुझे पत्थर तोड़ती हुई

रुखे बाल चेहरे पर भोलापन आँखोँ मेँ रोटी के लिये तड़प
अपने जीवन को कोसती हुई
इक मासूम बच्ची मिली थी मुझे पत्थर तोड़ती हुई

ना खिलौनोँ की तमन्ना थी उसे ना ही गुड्डे गुड़ियोँ का शौक
वो तो जिन्दा थी बस रोटी के लिये अपने बचपन को बेचती हुई
इक मासूम बच्ची मिली थी मुझे पत्थर तोड़ती हुई

उसके भी थे कुछ सपने
पढ़ लिखकर वो भी बनना चाहती थी ऑफीसर
लेकिन साथ ना दिया किसी ने वो मिली मुझे भूँख के लिये सपनोँ को छोड़ती हुई
एक मासूम बच्ची मिली थी मुझे पत्थर तोड़ती हुई !

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